...

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विडम्बना है ऐसी..

चिड़िया के चोंच सिल कर
कहते है सारे गगन में चहचहाओ,
मयूर के पंख काटकर
कहते है वन में नृत्य दिखाओ,
आकाश का जल छीनकर
कहते है उसे विश्व को भिगाओ,
धनक का वर्ण सूखो कर
कहते है उसे रंग बरसाओ,
धरा के सौंदर्य समेट कर
कहते है उसे अन्न उपजाओ,
शशि की मौजूदगी बिसरा कर
कहते है उसे उजाले फैलाओ,
अग्नि की ताप भूला कर
कहते है उसे प्यास बुझाओ,
प्रकृति के चक्र को रोक कर
कहते है एक संसार बसाओ,
है विरुद्ध जो नियति का
कहते है सारे काम कराओ,
विडंबना है ऐसी अपनों की
जो व्यर्थ ही कहते है सार बताओ।

© Annu Rani💦