...

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मर्यादा का दौर
जिसने भी पहना,
पड़ा उसको ही सहना।
मर्यादा का चोला,
क्या समझता संसार कोयला।

उड़ाये हैं खिल्ली,
मारे डंडे मानकर गिल्ली।
मतलबी कारवां,
कौन रक्षा करे बिन देख बागवाँ?

सतयुग की बातें,
बिसरी यादों से मुलाक़ातें।
नया देखकर दौर,
हंसे रब,सुन कपट का बस शोर।

मतलब को सलाम,
ज़रूरतें खामखां बदनाम।
झूठी शानो शौकत,
फिरकापरस्ती की बात है फक़त।


© Navneet Gill