...

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या मेरा असर है ?
आख़िर किसकी आरज़ू में पल - पल यूँ जल रहे हो ?
किस मौसम का असर है जो फ़ितरत बदल रहे हो ?
इन चंचल सी निगाहों में - ख़ामोशी जो प्रखऱ है ,
ये लहज़ा पुराना है या मेरा असर है ??

कितनी बार आईने में ख़ुदको मासूम दिखाया है ?
किन दिलों का क़र्ज़ उतरा - कितनो का बकाया है ?
ये शहद -ए- मिठास में जो मिठा ज़हर है ,
है ज़ायका ही ऐसा या मेरा असर है ??

ज़बानी शमशीर थे जो ज़माने के लिए...
हुए मज़बूर हैं क्यूँ स्याही बहाने के लिए ?
ये उफ़नते सागर में जो बदलाव की लहर है ,
है क़स्बा तुम्हारा ये - या मेरा शहर है ??

न फूलों पर निगाहें - न बग़ीचे में पैर...
फ़िज़ाओं की धुन पर ये रेतों की सैर.....
ये जो कलियों से रंजिश और भौरों का डर है ;
है शराफ़त पुरानी या मेरा असर है ?

- कोमल 'विनोद'
© Flying Birds

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