"उस मंजिल की आस में"
रिम-झिम, रिम-झिम बरसा पानी,
कुछ इस कदर, उस बरसात में,
आँखों के भी अश्क न दिखे,
कुछ उस कदर, उस बरसात में।
सर उठाएं चल रही थी,
उस एक मंजिल की आस में,
पर वो भी दिख न पाई दूर से,
उस धुँधले आकाश में।
...
कुछ इस कदर, उस बरसात में,
आँखों के भी अश्क न दिखे,
कुछ उस कदर, उस बरसात में।
सर उठाएं चल रही थी,
उस एक मंजिल की आस में,
पर वो भी दिख न पाई दूर से,
उस धुँधले आकाश में।
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