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उफ्फ.....ये चार लोग....!
जब से होश संभाला है, जानती हूँ उन्हे
मिली हूँ पर मिली नहीं, देखा हैं पर देखा भी नहीं
पड़ोस में हैं पर पड़ोसी नहीं, दोस्ती तो है पर दोस्त नहीं
फिर भी जब वो बगल से मुझे ताड़ते हुए गुजरते हैं
तो ऐसा लगता है, भली भांति पहचानती हूँ उन्हे

फिक्रदार हैं मेरे, मुझे अपना मानते हैं
मेरे दुख मेरी खुशी को, मुझसे भी ज़्यादा वो जानते हैं
बाबा माँ मेरे क्या खाक समझते है मेरे मन का रोग
मेरे जीवन के हर निर्णय पर अपना निर्णय देते हैं, वो चार लोग।

तो Career क्या चुना बेटा तुमने?
Dramatics? अरे वो तो नौटंकी है
Writing? अमा, हर कोई गुलज़ार थोड़े ही ना बन पता है
Salon? लो भई, अब बिटिया आपकी नाई बनेगी
Modelling? ऐश्वर्या समझ रखा है खुद को, सूरत भी होनी चाहिए?
जो करो जैसे करो, बस ये याद रखना की चार लोग क्या कहेंगे?

और lifestyle क्या बना रखी है तुंमने?
छोटे कपड़े? ना ना....बुरी नज़र को है खुला आमंत्रण
Parties? तौबा तौबा…Drugs वगैरह भी लेती हो क्या?
Boyfriend? सवा सत्यानाश! इज्ज़त तो गई आपकी!
खाना नहीं बनाती? उफ, शादी कौन भला मानस करेगा?
जो करो जैसे करो, बस ये याद रखना की चार लोग क्या कहेंगे?

जी, मेरी जान के दुश्मन बस चार लोग!!
पहचानती तो नहीं पर उन चारो का चेहरा कुछ एक सा दिखता है
बताऊँ कैसा?
आँखें ज़रूर बड़ी हैं क्योंकि मेरी हर गुस्ताखी पे लाल हो खुल जाती हैं
कुकुरनुमा कान है जो मेरी धीमी फुसफुसाहट पर खड़ा हो जाता है
सूप नखा की नाक है, बात बात में कट जाती है
और दाँत नहीं बस सर्प डंक है, डसना जिसकी फ़ितरत है
जहां जाती हूँ, जिससे मिलती हूँ,
अपने आतंक से सब को डरा रखा है
Value Education की किताब हैं वो, भाई,
moral science का पाठ सबको पढ़ा रखा है
तुम होगे बड़े तीसमारखान, काम अनमोल किए होंगे
पर सही किया या गलत, प्रश्न तो ये है कि चार लोग क्या कहेंगे?

घर चलना आता है क्या तुम्हें?
Furniture! ये क्या ले आई, durian लाना था ना?
Doctor! इन्हे क्यों दिखाया, dr चढ़ढ़ा को दिखाना था ना?
Shopping! खुद ही कर आई, मुझे भी बताना था ना?
Holiday! गर्मी में सिर्फ यूरोप ही जाना था ना?

मेरे opinions पे भी उनके सवाल
Politics? सुधर जाओ, ज़्यादा communist बातों से पेट नहीं भरता
Religion? Atheist हो, नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी
Gender? LGBT कोई gender है भला, तुम हिन्दू संस्कारो के नाम पर कलंक हो
Patriotism? 56 इंच का सीना सबसे ऊंची मिसाल है

और फिर उनके अनगिनत पर्सनल सवाल
इतनी उम्र हो गयी, शादी कब करोगी?
शादी को इतनी उम्र हो गयी, बच्चे कब करोगी?
एक बच्चे की उम्र हो चली, दूसरा कब करोगी?
दो बेटोयो की उम्र हो गयी, अब एक बेटा कब करोगी?

सच तो ये है उम्र दर उम्र गुजरती गयी, हर दिन इस डर में निकला कि वो क्या कहेंगे
पर ना वो चार लोग खुश हुए,
ना उनके चार सवालों का हुआ अंत
पर समय रहते समझ गयी मैं,
और मैंने उनकी कोई बात ना मानी
उनके सवालो का कोई जवाब नहीं दिया’,
बस वो किया जो ठीक था, वो किया जो सुंदर था
वो किया जो मन को लगा कि छोटा था पर मेरा था
नाराज़ हैं वो चार अब मुझसे,
अब घर मेरे नहीं आते, दरवाजा नहीं खटखटाते,
हर बात पे अपने opinions नहीं भिजवाते
मुझे नासमझ, अहंकारी और antisocial बुलाते हैं
मेरे निर्णय से उन्हे तकलीफ हो तो मेरे नाम का फतवा भी जारी कराते हैं
अब वो पड़ाव है कि मुझे उनकी फिक्र नहीं,
और उनमे मेरा ज़िक्र नहीं
पर फिर भी उनमे एक दंभ है

कहते हैं, कल जब मैं शिथिल पड़ जाओंगी और मुझे आखिरी विदाई दी जाएगी
मैं रहूँ ना रहूँ, वो फिर से निकल के आएंगे
चार लोग
बांस कि सेज पे मुझे कंधा देने, या मेरी मययत पर फूल चढ़ाने
पर उन चार कमजोर कंधो के ऊपर मैं rebellion का बोझ डालती हुई
अपने स्वाभिमानी जीवन की अकेली रचनाकर बन
अपनी हर कहानी स्वयं लिख सुनाऊँगी
चार कंधो पर तटस्थ बैठ एक बार फिर से हार के भी जीत जाऊगी
और जीत के भी हार जाएंगे मुझसे, मेरे अपने,
वो चार लोग।

© kritika_writes