कलमबोध
कलम हूं कलम मैं
अनोखी कलम हूं।
कोरा था कागज
थी मंजिल सफर पर
चली चाल टेढ़ी
पकड़ कर डगर को
कभी हाथ जज के
मुकद्दर लिखी हूं
कभी मौत लिख कर
बनी बावली हूं
गयी टूट खुद मैं
बड़ी बेरहम हूं
कभी बक्स जीवन
रही मस्तमौला
हस हस के रहती
खुश दिल अमन हूं।
कलम हूं कलम मैं
अनोखी कलम हूं।
किसी की कहानी
जुबानी किसी की
न इतिहास लिखते
थकी मैं कभी भी
शहीदी सहादत
स्वदेशी बगावत
फांसी की कीमत
अमर कर चली...
अनोखी कलम हूं।
कोरा था कागज
थी मंजिल सफर पर
चली चाल टेढ़ी
पकड़ कर डगर को
कभी हाथ जज के
मुकद्दर लिखी हूं
कभी मौत लिख कर
बनी बावली हूं
गयी टूट खुद मैं
बड़ी बेरहम हूं
कभी बक्स जीवन
रही मस्तमौला
हस हस के रहती
खुश दिल अमन हूं।
कलम हूं कलम मैं
अनोखी कलम हूं।
किसी की कहानी
जुबानी किसी की
न इतिहास लिखते
थकी मैं कभी भी
शहीदी सहादत
स्वदेशी बगावत
फांसी की कीमत
अमर कर चली...