...

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एक ख़्वाब कुछ जज़्बात
बस तुझसे मिलने का ख़्वाब पाले हूं मैं
तुम पागल समझते हो मुझे तो हां हूं मैं

कहते हैं हमारे बीच अफसाना नही था
बस इक बार कह दो तुम्हारा कौन हूं मैं

अगर हमदर्द है तो कभी आ मेरे सामने
क्यों पूछते हो दोस्तों से अब कैसा हूं मैं

जिस को चुना है उसे खुश रखो ताउम्र
अब किसी आंधी का जलता दिया हूं मैं

जड़ें सुखा दी मेरी हर हिज्र की रात ने
हरे जंगल में सूखा दरख़्त सा खड़ा हूं मैं

इस शहर के रास्ते तेरी याद दिलाते हैं
इक घर है मेरा जहां अपना भी नहीं हूं मैं

© रद्दी_काग़ज़
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