...

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मोहब्बत आज भी है...
तुम्हारी दी हुई क़लम से
आज भी नज़्में लिखता हूं,
मोहब्बत का सबूत और क्या चाहिए...

ज़रुरत होने पर याद करती मुझे,
मैं सब कुछ छोड़ तेरे पास आ जाता,
बेइंतहा प्यार की तारिफ़ में और क्या चाहिए...

तूम अलैहदगी चाहती थी, रिहाई चाहती...