...

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ज़िंदगी एक सजा है
जमाना बुरा है या
जिंदगी एक सज़ा है।
जिंदगी भर भुगते रहो
लाचारी बेबसी
की चोट खाते रहो,
बन्धन घर-बार नरक से तो कम नहीं ,
मुक्ति का असार नफ़रत की पनडगी
चुर चुर करती मोहब्बत के अरमां।
आख़री बगावत करे किससे
सारे दुश्मन बैठे मन के अंदर
बाहर बस छाया मात्र से डरते रहो,
पुकार पुकार के थक गए
आंसुओं के सैलाब में बहते रहो।





© Sunita barnwal