...

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मेरा वजूद
मैं फरेबी दुनिया से थक कर जब सुकून तलाशने निकलता हूँ,
तब मैं खुद के अंदर भी एक नकली 'मैं' से मिलता हूँ।
खुद से कुछ बेतुकी बहस करने के बाद जब मैं रुकता हूँ,
तब 'मैं कौन हूँ' खुद से यही पूछता हूँ।
फिर पता चला मैं असफलताओं और अधूरें सपनो का समूह हूँ,
मैं तो सिर्फ इक तन और मन के साथ इक बेचैन रूह हूँ।
अब मुझ में तनिक भी घमंड का वास न था,
क्योंकि अब मुझे इस भौतिक दुनिया पर विश्वास न था।
मुझे अब मेरा वजूद पता चल गया था,
मेरी सारी अकड़ का जनाजा निकल गया था।
~अमन