...

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श्रध्दा नाम नही सबक है।
श्रद्धा नाम नहीं सबक है,
आक्रोश और तरस है।
ये आक्रोश है आफताब के
दरिंदगी और बहशीपन पे,
समाज के सोच और खोखलेपन पे।

होती रहेंगी वारदातें ऐसी
बनती रहेंगी खबरों की सुर्खियां,
जब तक हम खोलेंगे नहीं
अंधे कानून की पट्टियां।

इन्तजार है किस बात का
क्या सोच रहे है हम?!
क्यूं नहीं उठाया अब तक
एक भी ठोस कदम?!
क्यूं ढूंढ रहे सबूत हम,
क्यूं प्रतीक्षा है किसी प्रमाण का?!

जब कर लिया है गुनहगार ने
खुद कुबूल अपने गुनाह का।
बिना गवाए एक पल भी
कर डालो हश्र वही इस हैवान का।

जब तक एक भी है जिंदा
आफताब जैसी कोई शख्सियत,
ऐसे ही शर्मशार होती रहेंगी
प्यार और इंसानियत।।

नही कहती की मिलेंगे इन...