...

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श्रध्दा नाम नही सबक है।
श्रद्धा नाम नहीं सबक है,
आक्रोश और तरस है।
ये आक्रोश है आफताब के
दरिंदगी और बहशीपन पे,
समाज के सोच और खोखलेपन पे।

होती रहेंगी वारदातें ऐसी
बनती रहेंगी खबरों की सुर्खियां,
जब तक हम खोलेंगे नहीं
अंधे कानून की पट्टियां।

इन्तजार है किस बात का
क्या सोच रहे है हम?!
क्यूं नहीं उठाया अब तक
एक भी ठोस कदम?!
क्यूं ढूंढ रहे सबूत हम,
क्यूं प्रतीक्षा है किसी प्रमाण का?!

जब कर लिया है गुनहगार ने
खुद कुबूल अपने गुनाह का।
बिना गवाए एक पल भी
कर डालो हश्र वही इस हैवान का।

जब तक एक भी है जिंदा
आफताब जैसी कोई शख्सियत,
ऐसे ही शर्मशार होती रहेंगी
प्यार और इंसानियत।।

नही कहती की मिलेंगे इन जैसे
किसी एक ही जाति,
धर्म या देश में।
नजर खोल के देखो तो
रूप को अपने बदले ये,
मिल जायेंगे दुनिया
के हर परिवेश में।

अकेले दोष नहीं है केवल
आफताब जैसे लडको का।
जिसने प्यार की आड़ में
भरोसे को तार तार किया।

उससे दुगनी है गलती
श्रद्धा जैसी लड़कियों का।
जिसने आधुनिकता की होड़ में
मर्यादाओं को पार किया।

जब जोड़ा होगा उसने रिश्ता
मां बाप ने खूब समझाया होगा।
जोड़ जोड़ के हाथ पैर न जाने
कितनी बार मनाया होगा।

फिर भी न मानी होगी बात उसने
परिवार का प्यार ठुकराया होगा।
एक अजनबी के प्यार की खातिर
अपनो को खून के आंसु रुलाया होगा।

माता पिता के इसी दर्द ने शायद
उसे अंत समय में इतना तड़पाया होगा।
हो चुकी थी देर बहुत तब,
ये उसको समझ में आया होगा।

हरदम होते नहीं मां बाप
गलत जब ये बच्चे सीखेंगे।
तब जाकर संस्कारों की
अहमियत को समझेंगे।

अब तो संभल जाओ लड़कियों,
सबक ले लो श्रध्दा के इस नाम से।
प्यार और धोखे में फर्क करो
तभी जाकर बच पाओगे इन
"35" टुकड़ों के अंजाम से।।
© Feel_The_Writing