...

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मज़दूर हैं साहेब
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
अपनों के लिए
अपनों से ही दूर हैं,साहेब।
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
दो वक़्त की रोटी भी दुश्वार है,
ज़िन्दगी में तकलीफें भी हज़ार है,
फिर भी मुस्कुराते भरपूर हैं।
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
वापस घर लौटने की इच्छा,
पर जेब भी खाली है,
भूख़ से बेहाली है,
मिलो पैदल चलना है,
घर अभी तो बहुत दूर हैं साहेब।
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
प्यासा है मेरा बच्चा,
थकान से चूर चूर है,साहेब।
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।


-@Kavyaprahar