...

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स्त्री
स्त्री

उसके होने से बची हुई है पृथ्वी
सृष्टि गरम है अनंत काल से
धरती फट सकती है उसके लिए
वह फैली होती है जीवन के रेशे-रेशे में
रक्त-मांस-मज्जा की तरह
जैसे फैली होती है पृथ्वी पर एक गझिन-सी लत्तर
उसके होने से
मौसम का एक रंग है जो कभी नहीं झड़ता
जंगल की एक आग है जो कभी नहीं बुझती
सृष्टि का एक बीज है जो हरपल कसमसाता है
वह चल कर आती है लोक-कथाओं से
एक आदिम गंध की तरह
और रच-बस जाती है हमारी जड़ों में...