...

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" दर्द पर बारिश की बूंदें "
हो जाता दर्द सहना जब इतना मुश्किल;
कि वो बयां शब्दों से कुछ ना करती है,
और बेबसी, रुसवाई.... तन्हाई बनकर;
जब पल-पल नागिन सी उसको डसती है,

लेती सांसे धड़कन से यूँ तो;
पर जब थोड़ा-थोड़ा हर दिन मरती है,
कभी छुपाती आंसू लोचन में;
तो कभी अधरों से झूठी मुस्कान वो हसती है,

तब दर्द पर बारिश की बूंदें;
राहत जैसी उसको लगती हैं.....

बच नजरों से दुनिया की दीवारों में चार;
जब मद्धम-मद्धम सांसे तन्हा हो सिसकती हैं,
और बरसों पले हर अरमान को उसके;
किस्मत जब कतरा-कतरा कर कतरती है,

उधेड़बुन कड़वी यादों की निरंतर;
मन-मस्तिष्क में जब उसके चलती...