...

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वक्त
किताबे खुली और आंखे नम थी
सड़क सुनसान और सन्नाटे कही और थी
आंसू बेबाक गिरते रहे आंखो से
मन भारी और अंदर तूफान सी चीख थी

मैं हस्ता रहा समाज को भरम थी
अंदर चल रहे शोर मैं...