...

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वक्त
किताबे खुली और आंखे नम थी
सड़क सुनसान और सन्नाटे कही और थी
आंसू बेबाक गिरते रहे आंखो से
मन भारी और अंदर तूफान सी चीख थी

मैं हस्ता रहा समाज को भरम थी
अंदर चल रहे शोर मैं खुदखुसी थी
मैं चिला न पाया बीच चौराहे पे
सुन ने को लोग के बीच हसी और सिर्फ हसी थी

उठा लगा जंग हार गया मैं
कश्ती डूबी सारा गम बार दिया मैने
हौसले को संभाला जियो ही
दिल शांत था और मन आभास को चुका था
मैं लड़ा जब तक जान थी
अब खुदा जाने मैं कितने के काम थी
मैं लड़ा जब तक जान थीं
© rsoy