...

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मुझे खोकर
मुझे खोकर भी वो खुश हो चली
या खुश होने का ढोंग रच चली

माना, कि माहीर हो तुम
मुझसे कईं ज्यादा शातिर हो तुम

मुझसे भी ज्यादा तजुर्बा है तुम्हें
ना ... नहीं ... प्यार का नहीं
खुदकी भावनाओं को दबाने का,
उसे जाहिर ना करने का हौंसला है ... तुममें

पर मैं बिलकुल ऐसा नहीं ...

जो होता है वो आंखो में दिख जाता है
अगर आंखो में ना दिखे तो
कागज़ के पत्तों में बिखर जाता है
या फिर होठों पे संवर जाता है

में तो अपने दिल का गुलाम हूं
प्यार की रगों से करता ...
तुम्हें सलाम हूं

तुम्हारे बढ़ते प्यार का जुखाम है मुझे
सिर्फ तसल्ली की तो दवा लाकर दे मुझे

क्या पता ... ?
में फिर से ठीक हो...