यादें बसंत की
यादें बसंत की
अब ये बसंत भी कब और
कैसे आया पाता ही ना चला
कभी एहसास हुआ करता था
भाव बिभोर किया करता था
वो हरियाली की चमक
पौधों पर नवकुसुम का आगमन
कभी डाली पर कोयल की कूक गूंजा करती थी
मस्त हवाओ के झोकों से
तन मन में हलचल हुआ करती थी
प्रकृति का मधुर संगीत
सबके मन को भाता था
जब मौसम बसंत का आता था
अब ये बसंत भी कब और
कैसे आया पाता ही ना चला
कभी एहसास हुआ करता था
भाव बिभोर किया करता था
वो हरियाली की चमक
पौधों पर नवकुसुम का आगमन
कभी डाली पर कोयल की कूक गूंजा करती थी
मस्त हवाओ के झोकों से
तन मन में हलचल हुआ करती थी
प्रकृति का मधुर संगीत
सबके मन को भाता था
जब मौसम बसंत का आता था