...

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हसरत
नित चल रहा अविरत सफर
लिप्साओ का करके भ्रमण
है विटप की कंटक डगर
नूतन लगे निशदिन नगर
कोमल सा है चित्तवन अगर
है दुर्ग भी इसमे मगर
क्रय-व्यय का रखे हिसाब कर
किस्सो को रखे अधर पर
इतिहास की , उगती फसल
लिखना जटिल है ताम्र पर
स्याही है ढूंढा उम्र भर
सोवत न हसरत रात, डर
नयनो को रखकर ताक पर
खोजत है राहे मन प्रखर
कोसत है नंगे पांव पर
फिर विडम्बना मे उलझकर,
स्थिर खड़ा जग हारकर,
दृढ़ता खड़ी सब भूलकर,
ख्वाहिश की बाहे थाम कर।
Shreya Mishra