...

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मैंने भी यारो इश्क़ किया है आँसू पीना सीख लिया है
जुस्तजू जिसकी थी वही न मिला
गुजरता गया इश्क़ का काफिला

सुनी कब दुबारा सदा-ए-मुहब्बत
उम्रभर ही रहा दरमियाँ फाँसला

दूर होती गयीं दिन-ब-दिन मंजिलें
कदम थक गए क्या करे हौसला

चलूँ मैं किधर गुमशुदा सब निशां
तन्हाईयों के सिवा कोई न दिखा

अश्क भी ये निभाते कहाँ साथ हैं
बस जह़न में मेरे दर्द का दाखिला

मुहब्बत है तुमसे मुझे आज भी
तुम मुकर सब गए मैं नहीं बेबफा

जुस्तजू जिसकी थी वही न मिला
गुजरता गया इश्क़ का काफिला