...

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कुछ गुलाब किताबों के नाम.....
आज फिर वो किताबे खुली,
जिसमें मोहब्बत के इंतेहा का गुलाब था,
यादों के इत्र की महक थी,
अश्कों से लिखे अल्फाज़ थे,
कांच सा बिखरा दिल था,
अधूरी सी धड़कन थी,
मोहब्बत वाला जाम था,
एक रंगीन इश्क़ वाला नशा था,
दर्द का सिला था,
तुम्हारी वो महकती हुई बातें थी,
एक दीवाने की दिवानगी थी,
एक नया पागलपन था,
जिसमें खुशियों के सपने सजे थे,
जिसमें उम्र भर के वादे थे,
शायद हमारा मिलना फ़िज़ूल था,
पर कायनाथ को शायद यही कबूल था,
तुम्हे भी कोई ऐतराज़ न था,
यही तो एक गहरा राज़ था,
शायद हमारी कहानी का यही साज़ था........

© Kashish Chandnani