7 views
चक्रव्यूह की रचना
था ये परम सत्य,
कल भी और आज भी।
समझा जिसे असत्य,
था मिला वो हर जगह भी।
सिखाया चलना,
फिर मगर गिराना भी,
चक्रव्यूह की रचना,
काश सीखा दें भेदना भी।
शून्य से लगे भाव,
जब अधर में छोड़ भी,
जीते केवल अभाव,
सोच भुलाये उन्हें हम भी।
अत्यधिक फर्क,
था दोनों पक्षों में भी,
रहना सदा सतर्क,
मिलेंगे मोड़ पे फिर कभी।
© Navneet Gill
कल भी और आज भी।
समझा जिसे असत्य,
था मिला वो हर जगह भी।
सिखाया चलना,
फिर मगर गिराना भी,
चक्रव्यूह की रचना,
काश सीखा दें भेदना भी।
शून्य से लगे भाव,
जब अधर में छोड़ भी,
जीते केवल अभाव,
सोच भुलाये उन्हें हम भी।
अत्यधिक फर्क,
था दोनों पक्षों में भी,
रहना सदा सतर्क,
मिलेंगे मोड़ पे फिर कभी।
© Navneet Gill
Related Stories
10 Likes
6
Comments
10 Likes
6
Comments