...

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ड़ोर
जीवन इक़ ड़ोर ही तो है
रंग-बिरंगे ख़्वाबों से सजी,

रिश्तों की.. एहसासों की
ख्वाइशों की औऱ..
औऱ प्रेम की ड़ोर,

मोहः के बंधन में पिरोई एक ख़ूबसूरत सी माला,

इसका कोई मोती रूठे तो आँसु
टूटे तो आँसु.. छुटे तो आँसु,
मुस्कुराहट तो बस इसके छोर पे लगी गाँठ पे टिकी है,
गांठ खुले.. तो बस सब शून्य..!

और आख़िर प्रभू से मिलाने बाली भी तो यही ड़ोर है.. श्रद्धा की
रुद्राक्ष की.. एक सो आठ मनकों बाली,

मन क़भी बिचलित हो तो इसे जपना.. कुछ मिले ना मिले पऱ शांति जरूर मिलेगी,

बाकी तो सब तिलिस्म है
मोहः का एक कहकशां सा है
तन से ज़्यादा मन को संभाल कर रखना
मन के क्रम ही साथ जाएंगे,

अब किसे क्या पता है के जाने कब यह सांसों की ड़ोर छूट जाये,
है ना..!

अब.. जीवन एक ड़ोर ही तो है!















© बस_यूँ_ही