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सूना मैदान
सूना लगता है वो मैदान भी अब जहां पूरा दिन गुजर जाता था
पहले प्यार सा था ये क्रिकेट जो सपने ही सपने ही दिखाता था

कोई था छोटा तेंदुलकर कोई खुद सहवाग कहलाता था
नेहरा जहीर बालाजी सा भी हर कोई बनना चाहता था

हर लेफ्टी कप्तान गांगुली था हर कीपर था महेंद्र सिंह जैसा
हर फिरकी गेंदबाज खुद को कहता था हरभजन सिंह जैसा

ओपनिंग करेगा कौन ये बस खेल पे नहीं होता था
लगता था पैसा मैच में जिसका वही ओपनर होता था

और कप्तान भी हर बार हमारा इस बात पे बदल जाता था
जिसका पैसा ज्यादा लगा वही कप्तान बन जाता था

कभी-कभी बॉलिंग और बैटिंग दोनो ही कप्तान करता था
चाहे फिर हो केवल बल्लेबाज पैसा वही बोलता था

टॉस जीत कर बैटिंग ही किसी भी पिच पर ले लेते थे
हारने वाली स्थिति में गेंद झाड़ियों में फेक देते थे

हर नो बॉल पे झगडा होना ये बेहद ही जरूरी था
क्यूकी बैटिंग टीम का अंपायर रखना जो मजबूरी था

11 की टीम से मैच तो हमने शायद ही कभी खेला होगा
जाने कितने बार बीच मैच में बच्चों को रिप्लेस किया होगा

अंतरराष्ट्रीय नियम भी अपने जैसे ही हम लगाते थे
अपने फील्ड पर बाउंड्री भी जो लगा सकें वो बनाते थे

पर जो भी था जैसा भी था सब अपना था अच्छा लगता था
यही से खेल के आगे जाने का सबका सपना सजता था

पर अब कहा है वो दोस्त जो जबरदस्ती उठा ले जाते थे
अब कहा है वो यार जो कहीं से भी गेंद ढूंढ लाते आए

शायद सब निकल गए बाहर अपने सपने बनाने को
बस एक मैं ही रह गया यहां सूना मैदान सजाने को

© Anjaan