ग़ज़ल "ज़िंदान"
१२२२ १२२२ १२२
तेरे जाने से दिल सुनसान क्यों है
हर इक धड़कन मेरी हैरान क्यों है
सजाया था जिसे गुलशन सा मैंने
वही दिल आज रेगिस्तान क्यों है
बनाया है मुझे क़तरा ख़ुदा ने
नदी से ही मेरी पहचान क्यों है
किसी के वास्ते मुश्किल है...
तेरे जाने से दिल सुनसान क्यों है
हर इक धड़कन मेरी हैरान क्यों है
सजाया था जिसे गुलशन सा मैंने
वही दिल आज रेगिस्तान क्यों है
बनाया है मुझे क़तरा ख़ुदा ने
नदी से ही मेरी पहचान क्यों है
किसी के वास्ते मुश्किल है...