किताबें कहती हमसे
किताबें कहती हमसे,
कभी आना उसके घराने
धूल को छाँटकर
आज़ादी का जशन मनाने|
बंद अलमारी में पड़ी हैं
पर आज भी इसी आस पर अड़ी हैं
कोई आकर उन्हें ले जाए
पन्ने पलटकर कुछ अल्फ़ाज़ पढ़ जाए|
यूँ गोद में उन्हें लेकर स्नेह जताना
थूक से सफ्हा पलटना
कहाँ...
कभी आना उसके घराने
धूल को छाँटकर
आज़ादी का जशन मनाने|
बंद अलमारी में पड़ी हैं
पर आज भी इसी आस पर अड़ी हैं
कोई आकर उन्हें ले जाए
पन्ने पलटकर कुछ अल्फ़ाज़ पढ़ जाए|
यूँ गोद में उन्हें लेकर स्नेह जताना
थूक से सफ्हा पलटना
कहाँ...