dhrutsabha 2
धृतसभा-2
धृत सभा जारी है
रिश्तों का चरित्र हनन भारी है
बदले की आग में जला मन
खींच लिया रिश्तों से आँचल
कुंठित अभिलाषाओं ने
निवस्त्र किया रिश्तों का तन
क्यों चाहा मुझे नही
किसी और का वरण कैसे
मैं बलशाली मुझ में पौरुष
दूजे पर तेरी तपन कैसे
दुर्योधन की सभा भरी है...
धृत सभा जारी है
रिश्तों का चरित्र हनन भारी है
बदले की आग में जला मन
खींच लिया रिश्तों से आँचल
कुंठित अभिलाषाओं ने
निवस्त्र किया रिश्तों का तन
क्यों चाहा मुझे नही
किसी और का वरण कैसे
मैं बलशाली मुझ में पौरुष
दूजे पर तेरी तपन कैसे
दुर्योधन की सभा भरी है...