“ये लत इश्क की, हमें क्यूं पड़ी??"
झुंझलाहट है मेरे, रोम-रोम में भरी,
ए-खुदा, ये लत, इश्क कि, हमें क्यों पड़ी ??
हमें रहना था उदासीन, मोहब्बत की नजरों से,
है जिंदगी का खोट, जिसे मरने की पड़ी...
बहला लिए गए जिस्म, नए लिबास दिखाकर,
बहले कैसे...
ए-खुदा, ये लत, इश्क कि, हमें क्यों पड़ी ??
हमें रहना था उदासीन, मोहब्बत की नजरों से,
है जिंदगी का खोट, जिसे मरने की पड़ी...
बहला लिए गए जिस्म, नए लिबास दिखाकर,
बहले कैसे...