...

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तुम्हें ढूँढती हूँ जब
तुम्हें ढूँढती हूँ जब भी
तुम नहीं मिलते
कोई और ही होता है
वो तुम नहीं होते
तुम्हें समझना चाहा जब भी
तुम वो नहीं निकले
जो समझा था
कुछ और ही थे तुम
जिसे नहीं जाना था
तुम्हें चाहना चाहती हूँ जब भी
कुछ ग़लत लगता है
फ़िर भी चाह लेती हूँ
प्रेम की एक डोर बाँध लेती हूँ
समझा लेती हूँ अपने आपको
कि तुम नहीं हो सकते किसी के भी
इसलिए मेरे भी नहीं हो ।



© Geeta Yadvendu