जानते हो ना तुम...?
नाजाने कितने ख़्वाब
आँखों की दहलीज़ से
फिसल कर
यूँ गुम हो जाते हैं कि
नींदों को ख़बर तक नहीं...
आँखों की दहलीज़ से
फिसल कर
यूँ गुम हो जाते हैं कि
नींदों को ख़बर तक नहीं...