...

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जीवन पथ
ऐ परछाई तु सुन मत मेरा
मैं अकेला हुं तु देना साथ मेरा
मै पथिक हुं जीवन पथ का
बैठा हु पथ के पेड की परछाई में
बहुत आए पथिक इस पथ पर
कुछ बेठे मेरे पास कुछ दुर से चल दिए
बहुत आयेंगे और चले जायेंगे
वो क्यों आते हे !
अपना बनाकर चले जाते है !
क्यों वो फिर नही आते हे !
पता नहीं कहा जाती होगी यह राह
जो जाता हे लौट कर नही आता
मैं भी तो इसी राह का राहगीर हु
कब तक इस तरु के तने निचे बैठुंगा
मुझे भी तो इस राह को नापना है
पता नहीं किस छोर तक जा पाउंगा
पता नहीं किस मंजील तक पहुंचुगा
लेकिन तुम तो हरदम मेरे साथ रहोगी
तुम तो उस मंजिल को देखोगी
में पहुंचुगा जब अपनी आखिरी मंजील
तब शायद मैं नही देख पाउंगा
क्या तुम देख पाओगी
क्योकि तुम तो रहोगी ना वंहा
लेकिन तुम शायद मुझे बता ना पाओगी
क्या मंजर था पिछे मेरे
ऐ परछाई क्या तुम बताओगी !!