...

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नई सुबह
एक नई सुबह को आना होगा
तुझे पूरा जोर लगाना होगा
बन श्रमिक,हटाने वाला पत्थर
बन तेज धार का चाकू कट्टर
खम ठोक दे कुछ तू ऐसा
अंधियारा का हो ऐसा तैसा
बढ़ चला अगर तू राहो में
रुकना न कभी अफ़वाहों में
बढ़ना है तुझे है बढ़ना ही
रुकना न कभी पीछे मुड़ना
चल लगा तेरी कुल चेतना तू
चलते व्यूहो को भेदना तू
आलोकित हो इस जग के नितांत
तुम हो नवजीवन के समांत
एक सुबह लाना होगा
हर जड़ जड़ अब पानी होगा
उठ और बढ़ा चल बढ़ता चल
हो लक्ष्य न आंखो से ओझल
ले तीर हाथ रुक चेत साध
पत्थर को कर दे आध आध
उदय तो होना होगा रवि को
हटना होगा प्रलय की छवि को
तू बढ़ता चल हां बढ़ता ही चल
अंधियारे को करता चल अचल
एक नई सुबह तो आएगी ही
घनघोर घटा तो जाएगी ही।
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