कोई नही एक सा यहाँ,,
बदलता समा, बदलता ये आसमाँ,
रहता नही कोई एक सा यहाँ,
जो मिला है या वो बढ़ जाएगा,
या वो मिट जाएगा,
खोने का डर भी खोने सा लगता है,
जब उम्मीदें टकराकर वापस आ जाया
करती है,
ख़ुद से ही जब जुदा हो चुके,
तो क्या ये समाँ जुदा करेगा,
जब ख़ुद ही पूरे ना कर सके उम्मीदें,
तो दूसरों कि उम्मीदों के सहारे
ख़ुद कि उम्मीदों को कब्तक मारेगा,
रूबरू होके भी जो अंजान है,
शायद उनके लिए ये आसान है,,
गुमनाम हो चुके है ख़ुद कि ही गलियों में,
जो कभी ग़ुम थे ख़ुद कि ही दुनिया में,,
© Himanshi_yadav04
रहता नही कोई एक सा यहाँ,
जो मिला है या वो बढ़ जाएगा,
या वो मिट जाएगा,
खोने का डर भी खोने सा लगता है,
जब उम्मीदें टकराकर वापस आ जाया
करती है,
ख़ुद से ही जब जुदा हो चुके,
तो क्या ये समाँ जुदा करेगा,
जब ख़ुद ही पूरे ना कर सके उम्मीदें,
तो दूसरों कि उम्मीदों के सहारे
ख़ुद कि उम्मीदों को कब्तक मारेगा,
रूबरू होके भी जो अंजान है,
शायद उनके लिए ये आसान है,,
गुमनाम हो चुके है ख़ुद कि ही गलियों में,
जो कभी ग़ुम थे ख़ुद कि ही दुनिया में,,
© Himanshi_yadav04