...

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।।मैं अक्सर तुम्हे जान लेता हूं।।
तुम्हें ढूंढता हूं मैं तुम्हारे ही शब्दों में,
कभी व्यतीत से तो कभी अतीत से,
कहीं मायूस होकर अगर कोई ग़ज़ल लिखते हो,
उसी ग़ज़ल से निकाल तुम्हारा हाल लेता हूं।
तुम बोलो न बोलो,मगर तुम क्या सोच रहे हो,
मैं अक्सर ये जान लेता हूं।।

तुम अक्सर ख्यालों में रहते हो,
मैं बेकरार रहता हूं जब तुम परेशान रहते हो,
चाहते हो कहना मगर तुम कहां कहते हो,
तुम्हारे मौन को शब्दों में बांध लेता हूं।
मैं माहिर तो नहीं खामोशियां पढ़ने में ,
मगर ये चुप्पी भी जान लेता हूं।।
@aman._.singh.07