प्रेम रुप!
तुम पत्थर की वो लकीर हो,
जो इस हृदय से मिटाएं नहीं मिटती!
तुम अग्नि की वो लौ हो,
जो एक बार जली तो बुझाएं नहीं बुझती!
तुम बरसात की वो बूंद हो,
जिसके बरसने से ठंडक...
जो इस हृदय से मिटाएं नहीं मिटती!
तुम अग्नि की वो लौ हो,
जो एक बार जली तो बुझाएं नहीं बुझती!
तुम बरसात की वो बूंद हो,
जिसके बरसने से ठंडक...