...

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बना दो हमको जेल का चोर।
ना स्कूल की घंटी की आवाज़,
ना सुबह की प्राथना ,
ना बच्चो का शोर,
ना मैदान में खेलते बच्चे,
ना टीचर की डांट,
ना मिल बांट कर खाना खाते बच्चे।
डेस्क बोलते है,
हम पर अब क्यू बच्चे नहीं बैठते ?
स्कूल के कमरे बोलते है ,
हम कब कक्षा बनेंगे?
ब्लैक बोर्ड बोलता है,
कब चोक जी से हम पर ज्ञान के अक्षर लिखेंगे?
खेल के मैदान हुए खाली,
अब कोई नहीं खेल रहा खो- खो और दे रहा ताली।
अब ना उस जेल से घंटी बजते ही बच्चे बहार निकलते ,
अब तो हुए बच्चे भी घर पर बोर ,
और बोलने लगे बना दो हमको फिर से उस जेल का चोर।

© nehachoudhary