पेड़ की बातें
चिलचिलाती धूप में
लेकर कागज़ कलम बैठा था
कुछ लिखने एक पेड़ की ठंडी छांव में
झुक कर पेड़ ने भी कह दिया आखिर
याद आई ना नई कविता बैठकर मेरी छांव में
जब जाती बिजली तुम्हारे घरों में
अक्सर मेरी याद आती है
या तब जब सुबह - सुबह टहलने की बारी आती है
(हां , वहीं जिसे तुम माॅर्निंग वाॅक कहते हो)
वरना कौन पूछता है
हमें इन पक्षियों के अलावा ...