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स्वप्नलोक
मैंनें कुछ ऐसा स्वप्न आज निशा में देखा है
हर कृत्य में उस स्वप्न के, तुम्हारी ही रूपरेखा है
ग़र वो सब सत्य में घटित हो जाता जीवन में
संपूर्ण बसंत आजाता यूँ ही, मन रूपी इस उपवन में
जितना ही सोचता हूँ कि संपूर्ण इच्छाएं,क्रियाएं सती होजाए
जब-जब दिख जाए चित्र तेरा,मेरे मन की न जाने क्यों दुर्गति होजाए
स्वप्न में भी तुम ऐसे ही एक तेज गुलाबी आभा से युक्त थी
जैसा मैं चाहता हूँ, वैसे ही तुम सारे कष्टों से मुक्त थी
दुख इस बात का नहीं, कि क्यों तुम दिल तोड़कर चली गई?
बिना कारण बताए तुम क्यों मुझसे मुख मोड़कर चली गई?
और जाना ही था जीवन से मेरे,तो सर्वस्व ही लेकर जाती
क्यों मेरे अंदर तुम अपना कुछ अंश छोड़कर चली गई?
वो सुख के अप्रतिम पल मेरे पास सर्वदा न रह सके
कहना तो बहुत कुछ था पर हम कुछ भी न कह सके
इतने में पूरा मंजर ही एकाएक बदल सा गया
मुझे किसीने उस अद्वितीय निद्रा से ही जगा दिया
मैं उस सुख के सिंधु में फिर न दोबारा जा सका
कुछ उसमें से सुख रूपी पुष्प न मैं ला सका
यदि मेरे पास असाधारण शक्ति होती, तो वो पल ही मैं रोक देता
जितना समेट सकता मैं,वो सब समेटने में मैं खुद को झोंक देता
हर तरह से मैं तुमको देना चाहता था सर्वस्व अपना
पर सबकुछ तो समक्ष ही होगया है मेरे सपना
जो भी हो, हमको पता नहीं पता था इतने जल्दी लोग बदलते हैं
हम तिनका थोड़ी हैं जो तुम्हारी आँखों में सदैव ही खलते हैं
अब कुछ कहने को तुमसे तो बचा नहीं है मेरे पास
बस ऐसे ही नित्य स्वप्नों को समेटने का करता रहूँगा प्रयास
मैं आरंभ से ही इश्क करनेवालों का सदैव समर्थक था
पर मेरा इश्क करना लग रहा है कि निरर्थक था
और तुमने भी अपने स्तरवालों में रहकर, कुछ गलत किया नहीं
बस यही सब क्षण था जो मेरे विचारों का प्रवर्तक था
दो तरह के लोगों को मैंनें जीवन में हमेशा से देखा है
इक जो करता झूठा इश्क और दूजा करनेवाला इश्क अनोखा है
और क्षण-क्षण में जो कृत्य करोगे,वो सब उज्जवलित होगा
सभी कृत्यों का कर्मफल इसी जीवन में अवश्य ही फलित होगा
और बात रही मेरी तो, मैं तो कभी नहीं बदला हूँ
इतने लोगों के कृत्य देखकर,मैं बन रहा जलजला हूँ
मेरा ह्रदय अब सुख, स्नेह सबसे कलाश होगया है
जब से सबकुछ देखा है मेरे अंदर सामान्य व्यक्ति लाश होगया है
अभी तो ये सब चीजों को संभालने का बस इक प्रारूप है
कुछ दिवसों में ज्ञात हो ही जाएगा कि मेरा नया जीवन जीने का कैसा रूप है
© प्रांजल यादव