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वृज कवित्त
विकल विहाल सब लोग बिललात हैं,
पुछत न कोउ कहाँ केहि ओर जात हैं।
कहे नहीं हाल सब बवाल चंहुओर है
हाट वाट ओंट जहाँ तहाँ ते विकात हैं।
छोट मोट वसन में करत ठिठोली हैं,
सारी बीच नारी अब कहूँ न दिखात हैं।
सब जन आपन आप ही में वात करें,
कोउ सखी,सहेली के घर नहीं जात हैं।
नदी तट फूल औ कम्बल की डारने पे,
सुवा औउर पक्षी अब एक न दिखात हैं।
लोग तो विकास के ध्यान के ग्राम में,
आंधी औ तूफानन मंत्त चले जाते हैं।
© abdul qadir
पुछत न कोउ कहाँ केहि ओर जात हैं।
कहे नहीं हाल सब बवाल चंहुओर है
हाट वाट ओंट जहाँ तहाँ ते विकात हैं।
छोट मोट वसन में करत ठिठोली हैं,
सारी बीच नारी अब कहूँ न दिखात हैं।
सब जन आपन आप ही में वात करें,
कोउ सखी,सहेली के घर नहीं जात हैं।
नदी तट फूल औ कम्बल की डारने पे,
सुवा औउर पक्षी अब एक न दिखात हैं।
लोग तो विकास के ध्यान के ग्राम में,
आंधी औ तूफानन मंत्त चले जाते हैं।
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