शीर्षक- ज़िंदगी कितने रूप रंग तेरे
© शीर्षक- ज़िंदगी कितने रूप- रंग तेरे ।
जिंदगी कितने सारे रंग-रूप तेरे
तुझमें समाए कितने शाम सबेरे। बचपन, लड़कपन, जवानी बुढ़ापा एक आता तो दूजा जाता, कितने चरण हैं तेरे।
नश्वर शरीर में जान फूंकती, सार्थकता तुझमें ही निहित रहती ।
जीवन चक्र तो चलता जाए, हम भूलें समय पर तू न भूलती।
पल -पल पर पहरे तेरे ।
आत्मा अमर यही सच्चाई तू सदैव बतलाती,
शंहशाह या रंक हो चाहे, अमीर- गरीब हो कोई भी प्राणी हो चाहे, प्राण -पखेरु उड़ जाएगें जब तू शरीर से निकल पुकारे ।
जिंदगी कितने रुप रंग तेरे।
रिया दुबे
Thoughtforourmind