रिहाई रूह की मुमकिन हो कैसे
ज़िंदान ए रूह से रिहाई नही चाहिए मुझको...
तलब है इश्क की तवज्जो चाहिए मुझको...
गिला भी तुझसे और मरहम भी तुझसे ही चाहिए मुझको...
तू है तलब और इसको सुकून भी...
तलब है इश्क की तवज्जो चाहिए मुझको...
गिला भी तुझसे और मरहम भी तुझसे ही चाहिए मुझको...
तू है तलब और इसको सुकून भी...