...

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चांद
"क्या बात है।''
आज तो तेरा नुर बडाही निखर आया है,
जनाब हम तो रोज ही निखर आते है;
आपको आज उससे
फुरसत मिली है,
क्या बात है? आज
आपका चाँद काहाँ है.....
मैं तो वही चाँद हू जो
रोज आपके सिरहाने मे हैं,
आपके चाँद को मुँह- अपना
कर निकल जाता है,
आपको देखा फिर समझा
आपका चाँद तो दिन मैं ही आता है,
मैंने देखा के
लोग मुझपर लिखते है,
पर बेखुदी देखो मेरी थे
लिखावत भी उस चाँद के लिये है..
'चल माना मैने;,
नुर-ए-बहार है,
पर मेरे चाँद सा खुबसुरत कोई और नहीं है,
ये मेरी लिखावट मेरी कलम
कि नही उसकी बहारत कि है,
लिखु जितना उतने अल्फाज
मुझे लागते कम है,
मेरे चाँद सा कोई दुजा और नहीं है....
© Sejal Saste