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इंतजार
बड़ी मुद्दत से रुसवा हैं, रुस्त कायनात हमारी,
जमीन की फितरत को हवा में उड़ा दें,कोई मुस्तैद नशा बन के आओ।।
जो दिखता हैं वो होता नही हैं,अक्सर..जमाने में
निगाहों का फरेब सीने की आदत हैं,हमारी..
नुसरत ए राह ना सही,कोई तहनीशा बन के आओ।।
आजियतो के जखीरे से सजी सिहायत
कादंबरी सफर मेरा " शायर"
और तमीमा तुम
कोई गैर कहकशां बन के आओ।।
स्वरचित ©copyright regerved
© डॉ एस एल परमार "शायर"
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