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कैसा नज़रिया और कैसी समझदारी
अब इस दौर में कहाँ दोस्ती और रिश्तेदारी है
ज़रूरत के लिए है साथ सभी यही दुनियादारी है।
इंसान ही इंसान का उपयोग करने में लगा हुआ है।
ना जाने इस युग में लगी सबको कैसी बीमारी है
मेहनत करना भूल गये सिर्फ़ नतीजों की प्यास है
जहाँ देखों वहाँ सिर्फ़ आपा-धापी है, मारा मारी है।
अपनी संस्कृति को भुलाकर गर्व से इठलाते है
आधुनिकता के नाम पर हावी सिर पर ख़ुमारी है।
वक़्त से पहले ही सब कुछ पा लेना चाहतें हैं
कैसा ये नज़रिया है और कैसी समझदारी है।
जीवन में किसी के भी ज़िंदादिली नज़र नहीं आती है
जीने मरने का खेल रोज़ाना बे-दस्तूर मग़र जारी है।
© Gaurav J "वैरागी"
#gauravगाज़ियाबादी #gaurav_j_वैरागी #gaurav_jausol #gaurav_ghaziabadi
ज़रूरत के लिए है साथ सभी यही दुनियादारी है।
इंसान ही इंसान का उपयोग करने में लगा हुआ है।
ना जाने इस युग में लगी सबको कैसी बीमारी है
मेहनत करना भूल गये सिर्फ़ नतीजों की प्यास है
जहाँ देखों वहाँ सिर्फ़ आपा-धापी है, मारा मारी है।
अपनी संस्कृति को भुलाकर गर्व से इठलाते है
आधुनिकता के नाम पर हावी सिर पर ख़ुमारी है।
वक़्त से पहले ही सब कुछ पा लेना चाहतें हैं
कैसा ये नज़रिया है और कैसी समझदारी है।
जीवन में किसी के भी ज़िंदादिली नज़र नहीं आती है
जीने मरने का खेल रोज़ाना बे-दस्तूर मग़र जारी है।
© Gaurav J "वैरागी"
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