"सिर्फ एक मां ही जानती है"
हंँसी के पिछे का दर्द जानती है,
झूठ मेरा झट से वो पकड़ती है,
आसूं खुशी के या गम छुपा रहे,
कैसे,सिर्फ़ एक मांँ ही जानती है.!
तबियत नासाज़ या बिगड़ा है मन,
मन से हारा या थका हुआ है तन,
डगमगाते कदमों का...
झूठ मेरा झट से वो पकड़ती है,
आसूं खुशी के या गम छुपा रहे,
कैसे,सिर्फ़ एक मांँ ही जानती है.!
तबियत नासाज़ या बिगड़ा है मन,
मन से हारा या थका हुआ है तन,
डगमगाते कदमों का...