...

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हादसों_के_निशान_को_ऐसे_सँवार_रहा_हूं
किताबों के पन्नों पे हादसों को उतार रहा हूं
सुर्ख़ रंग से ज़ख़्मों के निशान सँवार रहा हूं
अधूरे शब्दों में दर्द की तमाम बातें रखें हुए है
हर लफ़्ज़ को वक़्त के पन्नों पे गुज़ार रहा हूं

हाल-ए-हालात का ज़िक्र अश्क़ो में समेटे है
ज़िंदगी के फ़लसफ़ो का मैं चित्रकार रहा हूं
लबों पे यूं ही नहीं है हादसों की इक कहानी
किताबों के पन्नों पे कच्चा सा व्यवहार रहा हूं

ख़ामोशियों का तमाशा दर्द की भाषा हो गई
यूं ही नहीं है पन्नों पे अधूरा अधिकार रहा हूं
इम्तिहानों का रुतबा पर इक लिखने बैठे है
कोरे पन्नों पे हादसों का इक ए'तिज़ार रहा हूं

चेहरे के हाव भाव को टटोलकर समेटे हुए है
छुपें हुए निशानों का मैं इक गुनाहगार रहा हूं
कुछ इस तरह हादसों ने सिलसिले बुनें हुए है
लफ़्ज़ों में यूं ज़ख़्मों का मौसमी-बुख़ार रहा हूं

गुजरते हुए वक़्त का हिसाब किताब समेटे है
मैं किताबों के पन्नों पे हादसों को उतार रहा हूं
अपनी कहानी का ज़िक्र अश्क़ो में ऐसे रखें है
हादसों के निशान से खुद को ऐसे सँवार रहा हूं

{ए'तिज़ार :- माफ़ी}

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes