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उड़ान।
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
अपने सपनो के खातिर तो सबकुछ छोड़ हम भी आसमान में उड़ना चाहते थे,
बस वो खिलने वाले हाथों के चेहरे पर अति हुई जुर्रिया देख रुक गए हे।
© Shivam.Luhana
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
अपने सपनो के खातिर तो सबकुछ छोड़ हम भी आसमान में उड़ना चाहते थे,
बस वो खिलने वाले हाथों के चेहरे पर अति हुई जुर्रिया देख रुक गए हे।
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