...

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बारिश या ख़ामोशी
करवट बदलते खामोशियों की
अल्फाज उतर आते है
जमीन पर....
फिर उमड़ता घुमड़ता सावन चंद
बुंदो से पहचान बना लेता है..
क्या पता!! आज बरस कर भी
खामोशीया कुछ कह पाएंगी ?
छल छल करती बहती नादिया भी
उमड पडेगी अपने किनारों पर....
या झरना बन कर भिगा देगी
तनमन को संतृप्त गीला |

मै अंदर अब तक गहरा संमुदर
बह लाता हूँ,
बारिश का पानी पीता हुआ !!
कभी कभी घूंट घूंट अभिशप्त
कभी-कभार खल खल गूँजता
भले ! आबोहवा एहसास
कराती है नदियों का शृंगार ...
और मै तन्हाई में किनारों से
लड़ता रहता हूँ,
फिसलते हुए यादों को संजोते !

हाँ!!
बरसती है खामोशी यहाँ
बारिश बन.....
पर शायद ही
कुछ कह पाती है
व्यक्त हो पाती है


© Bkt...