...

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बारिश या ख़ामोशी
करवट बदलते खामोशियों की
अल्फाज उतर आते है
जमीन पर....
फिर उमड़ता घुमड़ता सावन चंद
बुंदो से पहचान बना लेता है..
क्या पता!! आज बरस कर भी
खामोशीया कुछ कह पाएंगी ?
छल छल करती बहती नादिया भी
उमड पडेगी अपने किनारों पर....
या झरना बन कर भिगा...