...

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बिछड़न का श्रृंगार
चूड़ियों की खनक में लिपटी हँसी,
अब मौन की चादर में छिप गई,
सिंदूर की रेखा, जो माथे पर चमकी,
अब चंदन की बिंदी में बदल गई।

फूलों की महक, जो आँचल में बसी,
अब पवन के संग बह चली,
मंगलसूत्र की चमकती डोरी,
अब शांति की कथा कह चली।

कंगन, बिछिया, करधनी की रुनझुन,
अब मौन के गहरे सागर में डूबी,
श्रृंगार का हर अंश, जो जीवंत था,
अब चिता की अग्नि में समा गया।

पीपल, तुलसी, आम की लकड़ी,
साथ दे रहे अंतिम यात्रा में,
हर सजावट की अंतिम रेखा,
अब आत्मा के सच्चे स्वरूप में।

एक पल ठहर कर सोचती हूँ,
क्या यही है जीवन का असली श्रंगार?
क्या यही है प्रेम का सच्चा रूप?
या यह है आत्मा का दिव्य उद्गार?

जीवन की यह अनमोल यात्रा,
श्रृंगार से शून्य, पर पूर्णता की कथा,
अंत में यही है सच्चा आलिंगन,
शांति और मुक्ति का अभिनंदन
© ऋत्विजा