बिछड़न का श्रृंगार
चूड़ियों की खनक में लिपटी हँसी,
अब मौन की चादर में छिप गई,
सिंदूर की रेखा, जो माथे पर चमकी,
अब चंदन की बिंदी में बदल गई।
फूलों की महक, जो आँचल में बसी,
अब पवन के संग बह चली,
मंगलसूत्र की चमकती डोरी,
अब शांति की कथा कह चली।
कंगन, बिछिया, करधनी की रुनझुन,
अब मौन के गहरे सागर में डूबी, ...
अब मौन की चादर में छिप गई,
सिंदूर की रेखा, जो माथे पर चमकी,
अब चंदन की बिंदी में बदल गई।
फूलों की महक, जो आँचल में बसी,
अब पवन के संग बह चली,
मंगलसूत्र की चमकती डोरी,
अब शांति की कथा कह चली।
कंगन, बिछिया, करधनी की रुनझुन,
अब मौन के गहरे सागर में डूबी, ...