कुछ अनकही पंक्तियाँ रह गई
लगता है जैसे
अभी कल की ही बात है ,
जब तुमने मुझसे पहली दफा बात की थी |
मेरे दिल ने तेरी आवाज सुनते रहने की
फरियाद की थी |
उन दिनों तेरी बातों को सोचते हुए ,
न जाने मैंने अपनी कितनी सुबहों को
रात की थी |
कितने उमंग भरे थे वो दिन
जब था तु साथ मेरे
बढ रहे थे हम उजाले की ओर
पीछे छोड़कर अंधेरे
थाम रखा था हमने जिसे कसकर
वो वक्त न जाने कब हाथों से फिसल गया ,
पता ही न चला |
अब तक ठहरा था जो काफिला हमारी बगिया में
वो कब आगे चल पड़ा ,
पता ही...
अभी कल की ही बात है ,
जब तुमने मुझसे पहली दफा बात की थी |
मेरे दिल ने तेरी आवाज सुनते रहने की
फरियाद की थी |
उन दिनों तेरी बातों को सोचते हुए ,
न जाने मैंने अपनी कितनी सुबहों को
रात की थी |
कितने उमंग भरे थे वो दिन
जब था तु साथ मेरे
बढ रहे थे हम उजाले की ओर
पीछे छोड़कर अंधेरे
थाम रखा था हमने जिसे कसकर
वो वक्त न जाने कब हाथों से फिसल गया ,
पता ही न चला |
अब तक ठहरा था जो काफिला हमारी बगिया में
वो कब आगे चल पड़ा ,
पता ही...