...

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"यादें"
इन गलियों में वापस आने की चाहत जताती हूं ...
जहां से मेरे बचपन की यादें जुड़ जाती हो ।
ऊंचाईयों के सपने देखे थे जहां से ....
छूटते कुछ अपने देखे थे जहां से ,
जहां से आसमान के सितारों से बातें हुआ करती थी ....
अपनी भी एक सपनो की नगरी हुआ करती थी !
अपनों से करीब अपनापन गैरों का था ,
पूरी जिंदगी ना सही पर मोल संग बिताई पहरो का था ।
साइकिल पे बैठे यार की बात ही कुछ और थी .....
तब इन होठों पे मुस्कुराहट और दिल में संतोष की बाहार थी !
दोस्तो के संग जी थी जो जिंदगी,
हर एक पल याद आया स्कूल के आखरी दिन ।
आंखों में आसूं और होटों पे हंसी हुआ करती थी .....
हां मुझे याद है वो समय जब जिंदगी अपनी हुआ करती थी !!
© blackberry